Saturday, 3 December 2011


बंसी की कहानी........
साँसों (बंसी) का दिल (मोहन) से रिश्ता बहुत गहरा होता है-------और-------दिल में ही सुरों का बसेरा होता है------------जो कि साँसों के रस्ते अपने मुकाम को पहुंचता है........................
अब जब कि दिल ही दिलवर के साथ दूर कहीं दूर चला जाए---------तो साँसें उन सुरों को पायें तो कैसे पायें----------हम गायें तो कैसे गायें................यही है कहानी `बादल` की जुवानी------


और ये कहानी है---------------

दिल की............और..............साँसों की
बंसी की...........................मोहन की
बादल की..........................बदली की
चंदा की..........और............चकोरी की
एक पागल की....और.....एक पगली की


क्या है ये कहानी...............
कभी फ़ुरसत न थी होठों से, कभी फ़ुरसत न थी अंगुलिओं से
न मोहन को बंसी से........और.......न बंसी को मोहन से
क्या पता   था   कि   घड़ी      एक         ऐसी भी आएगी
जब मोहन बंसी को और बंसी मोहन को बहुत रुलाएगी
जब याद तेरी आएगी------बस-------याद तेरी आएगी


और जब याद आती है तो दिल कहता है.............

स्वर बंसी के बिलकुल अभी हैं वही
स्वर साँसों में अब भी पड़े हैं वही
दिल गाये की रोए है अनजान 'बादल'
है बंसी वही पर दिलवर नहीं

वो दिन थे कि फ़ुरसत नहीं थी कहीं
थी बंसी यही और था मोहन यही
यही चन्द्रमा था चकोरी यही
यही होठ थे और थीं साँसे यही

कहाँ खो गईं दिल की सारी उमंगें
वो दिल का बागीचा वो पलकों के झूले
परेशां ये बादल कहाँ जम के बरसे
उन नयनों से बरसे की गालों को छू ले

फिर भी...........

उठेगी तेरे दिल में इस दिल की बदली
बजेगी और चुप सी बंसी ये पगली
तेरे दिल से होके और आँखों से झरके
अधरों पे सजेगी सदा मुस्कुराके
सदा यूँ ही हंस के सदा मुस्कुराके
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