Monday, 11 April 2011

आज फिर..........

आज फिर हमको वो कसम याद आई है
आज फिर आँखों में दो बूँद उतर आई है

आज फिर..........
बस्ती-ए-दिल थी गुलजार फ़कत होने से
आज क्यूँ इसमें वीरानी सी इक छाई है
आज फिर..........
ऐ चाँद तू उनसे कह देना मगर चुपके से
आज फिर दिल में तेरी याद उतर आई है
आज फिर..........
रास्ते हैं सूने जिन्दगी के लेकिन/मगर
साथ मेरे तेरी यादों की परछाई है
आज फिर...........
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