Monday, 5 December 2011

कौन जाने किस घड़ी ये इत्तेफाक हो जाये


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है तेरे साथ मेरी वफ़ा मै नहीं तो क्या..............
...............कैफ़ी  आज़मी 
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कौन जाने किस घड़ी ये इत्तेफाक हो जाये
कहते हैं जिसे इश्क़ वो दिल का रोग हो जाये
ला-इलाज है ये मर्ज़ इससे बचना ऐ दोस्तों
कहीं खुद अपने घर में दिल बे-मकान न हो जाये.................


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Saturday, 3 December 2011


बंसी की कहानी........
साँसों (बंसी) का दिल (मोहन) से रिश्ता बहुत गहरा होता है-------और-------दिल में ही सुरों का बसेरा होता है------------जो कि साँसों के रस्ते अपने मुकाम को पहुंचता है........................
अब जब कि दिल ही दिलवर के साथ दूर कहीं दूर चला जाए---------तो साँसें उन सुरों को पायें तो कैसे पायें----------हम गायें तो कैसे गायें................यही है कहानी `बादल` की जुवानी------


और ये कहानी है---------------

दिल की............और..............साँसों की
बंसी की...........................मोहन की
बादल की..........................बदली की
चंदा की..........और............चकोरी की
एक पागल की....और.....एक पगली की


क्या है ये कहानी...............
कभी फ़ुरसत न थी होठों से, कभी फ़ुरसत न थी अंगुलिओं से
न मोहन को बंसी से........और.......न बंसी को मोहन से
क्या पता   था   कि   घड़ी      एक         ऐसी भी आएगी
जब मोहन बंसी को और बंसी मोहन को बहुत रुलाएगी
जब याद तेरी आएगी------बस-------याद तेरी आएगी


और जब याद आती है तो दिल कहता है.............

स्वर बंसी के बिलकुल अभी हैं वही
स्वर साँसों में अब भी पड़े हैं वही
दिल गाये की रोए है अनजान 'बादल'
है बंसी वही पर दिलवर नहीं

वो दिन थे कि फ़ुरसत नहीं थी कहीं
थी बंसी यही और था मोहन यही
यही चन्द्रमा था चकोरी यही
यही होठ थे और थीं साँसे यही

कहाँ खो गईं दिल की सारी उमंगें
वो दिल का बागीचा वो पलकों के झूले
परेशां ये बादल कहाँ जम के बरसे
उन नयनों से बरसे की गालों को छू ले

फिर भी...........

उठेगी तेरे दिल में इस दिल की बदली
बजेगी और चुप सी बंसी ये पगली
तेरे दिल से होके और आँखों से झरके
अधरों पे सजेगी सदा मुस्कुराके
सदा यूँ ही हंस के सदा मुस्कुराके
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Monday, 11 April 2011

आज फिर..........

आज फिर हमको वो कसम याद आई है
आज फिर आँखों में दो बूँद उतर आई है

आज फिर..........
बस्ती-ए-दिल थी गुलजार फ़कत होने से
आज क्यूँ इसमें वीरानी सी इक छाई है
आज फिर..........
ऐ चाँद तू उनसे कह देना मगर चुपके से
आज फिर दिल में तेरी याद उतर आई है
आज फिर..........
रास्ते हैं सूने जिन्दगी के लेकिन/मगर
साथ मेरे तेरी यादों की परछाई है
आज फिर...........
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Sunday, 10 April 2011

"और फिर "

"और फिर "

उन आँखों कि गहराई में हम यूँ खो गए
कहने लगे लोग कि बस दीवाने हो गए
इस दिल की झनकार में कोई झूमे तो झूमे "बादल"
किसको पता कि दिल के टुकड़े हजार हो गए...........

अभी कल ही............

कल हमने दिन में रात होते देखी
सूरज से चांदनी की मुलाकात होते देखी
किसी ने कहा क़यामत तो किसी ने जलवा-ए-हुश्न
हमने अपनी बस्ती-ए-दिल तमाम होते देखी


लोग कहते हैं कि नजरों कि जुवां नहीं होती
हमने इन आँखों कि आँखों से बात होते देखी
वादी-ए-दिल में जुल्फों कि घटा यूँ लहराई "बादल"
कि, पलकों तले भि हल्की बरसात होते देखी

Saturday, 9 April 2011


__इन्तहा__
तेरी महफ़िल में ये पागल ये दीवाना आया है
तेर दीदार की हसरत में ये परवाना आया है
अब रखे दिल में इसको या जमाना मार दे ठोकर
ज़माने से बगावत कर के तुझपे मिटने आया है
ये तेरी ही निगाहों की नशीली प्यास है शाकी
खड़ा हूँ मय में दिल में प्यास है फिर भी मगर बाकी
प्याला तो मै पा लूँगा मगर तेरे इश्क़ की हाला
जो नज़रों से पिला दे तो लगेगी मौत भी फीकी
ये परवानों की हस्ती है की मिट के मिट नहीं पायी
शमा उनको जलाके खुद भी जिन्दा रह नहीं पायी
ये परवाना हमेशा तुझ पे ही मिट जाता है शमा
मगर इसको जलाके तू भि आंशू रोक न पायी
समंदर है नहीं वाकिफ़ मेरी इस प्यास से 'बादल'
नहीं तो मिन्नतें करता वो तेरा थाम के आँचल
दो कतरा इश्क़ का तेरी है मेरी प्यास से ज्यादा
जो चाहे तो पिला/जिला दे या रख दे प्यास से पागल............
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